रामनवमी का पर्व चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है।हिंदू धर्म शास्त्रो के अनुसार इस पवित्र दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ था।शास्त्रो के अनुसार त्रेता युग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने के लिये भगवान विष्णु ने श्री राम के अवतार के रूप में जन्म लिया था। रामनवमी के पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रो का समापन भी होता है।पूजा अर्चना के साथ,पवित्र नदियों में स्नान करने वाले भक्तजन विशेष पुण्य के भागीदार बनते हैं। इस संसार के पालनहार भगवान विष्णु ने त्रेता युग में धर्म की स्थापना व अधर्म का समूल नाश करने हेतू धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। भगवान विष्णु ने अयोध्या नगर के राजा दशरथ की महारानी क़ौशल्या के गर्भ से,चैत्र मास की नवमी को,राम जी के रूप में जन्म लिया था।तब से पूरे विश्व में भगवान राम का जन्मोत्सव पूरे धूम धाम से मनाया जाता है।

जीवन में हमेशा विपरीत हालात का सामना करने वाले प्रभु श्री राम के कार्य हमेशा से जन सामान्य को सीख देते आये हैं।भगवान राम का जीवन हमें यह सिखाता है की जीवन के मुश्किल हालात का सामना हमें धर्यपूर्वक व सभी की सहमति से करना चाहिये। आज हम भगवान राम के इन्ही गुणों का विश्लेषण करेंगे। जिन पर चलकर हम अपनी ज़िंदगी को सरल व सुखमय बना सकते हैं।

भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता है।अर्थात सार्वजनिक जीवन में अत्यंत मर्यादित व पुरुषों में श्रेष्ठ माना जाता है।जीवन के किसी भी संकट में क्रोध व उत्तेजना से बचकर मर्यादित व्यवहार करना एवम् जीवन की हर मुश्किल स्थिति का सामना बड़े ही सुवयस्थित तरीक़े से करना ही प्रभु राम के सर्वश्रेष्ठ ग़ुणो में शामिल है।भगवान राम समस्त वेदों के ज्ञाता व युद्ध की सम्पूर्ण कलाओं में निपुण थे। मरते वक़्त रावण भी प्रभु राम के मुख से ज्ञान प्राप्त कर अपना परलोक सुधारना चाहता था । भगवान राम ने कभी भी समाज में व्याप्त ऊँच-नीच व जाति प्रथा का समर्थन नहीं किया।निषादराज से दोस्ती व शबरी के बेर खाना,भगवान राम की महानता को दर्शाते हैं । भगवान राम की हर जाति,हर धर्म व हर वर्ग के व्यक्तियों से अटूट मित्रता रही।क़ेवट हो या सुग्रीव, निषादराज हो या विभीषण, भगवान राम ने मरते दम तक इनके साथ अटूट मित्रता निभाई। स्वयं को संकट में डाला पर मित्रता निभाने में कोई समझौता नहीं किया।

भगवान राम प्यार,दया,स्नेह व सकारात्मकता की प्रतिमूर्ति थे। उनका शांत व दया से भरपूर व्यवहार एक पुत्र,पति,भाई,मित्र व राजा के लिए सम्मान प्रदर्शित करने वाला है। प्रभु राम के परिवार के हरेक सदस्य ने परस्पर प्रेम व बलिदान का उदाहरण पेश किया है।भगवान राम में भाईयों के प्रति त्याग व समर्पण का भाव कूट कूट कर भरा था।अयोध्या का राजपाट त्यागने के लिये उन्होंने एक पल का भी इंतज़ार नहीं किया। वहीं भाईयों में इतना स्नेह व त्याग भावना थी की लक्ष्मण ने 14 वर्ष जंगल में प्रभु राम की सेवा में बीता दिये और वही महल में रहते हुए भरत ने भी एक सन्यासी की भाँति जीवन जिया । भगवान राम,लक्ष्मण व वानर सेना द्वारा लंका विजय के लिये तैयार पुल विश्वास व चमत्कार की निशानी है। जैसे पत्थर पर राम नाम लिखने से ही पत्थर पानी में तैरने लगते हैं।वैसे ही भगवान राम का नाम लेने से लोग जीवन रूपी भव सागर को पार कर सकते हैं।

रामनवमी के दिन लाखों लोग राम नाम का जाप करते हुए व्रत धारण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से उपासक की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं और उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।समाज में व्याप्त बुराइयों पर जीत हासिल करने के लिए हमें प्रभु राम के व्यक्तित्व से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। यही भगवान के प्रति सच्ची भक्ति होगी। धन्यवाद व जय हिन्द