आज के आधुनिक युग में हम आर्थिक रूप से भले ही सुदृढ़ व मज़बूत होते जा रहे हैं लेकिन मन से कमज़ोर व अन्दर से खोखले होते जा रहे हैं।अपनी भरी पूरी ज़िन्दगी में हम इतने व्यस्त हैं की किसी से भी बात करने के लिये हमारे पास वक़्त की कमी है, प्रशंसा तो बहुत दूर की बात है।हर रिश्ता चाहे वह आत्मीय हो, ख़ून का हो,दोस्ती का हो या फिर व्यवसायिक, हमसे दो शब्द प्रशंसा के सुनना चाहता है।वह प्रशंसा जो हमारे रिश्तों में फिर से एक नई ताज़गी का अहसास कराए व हमें एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जोड़े, ऐसे रिश्तों का नितान्त अभाव है।प्रशंसा आपसी व आत्मीय सम्बन्धों में एक नई जान फूँक सकती है।प्रशंसा आपसी बातचीत के माहौल को ख़ुशनुमा बनाकर एक अत्यन्त सुखद माहौल का निर्माण करती है और सम्बन्धित व्यक्ति की मानसिकता को बदलकर उसे अपार सुख का अनुभव कराती है।धन्यवाद, बहुत बढ़िया, वाह, शानदार, अति उत्तम जैसे शब्द उस व्यक्ति के कार्य को मापने व उसकी प्रशंसा करने में सबसे बढ़िया भूमिका निभाते हैं।यही प्रशंसा के दो शब्द उसकी कार्यक्षमता को बढ़ाकर उसे ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं।

प्रशंसा सुनना मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है —
मनुष्य आदिकाल से ही प्रशंसा व आत्मसम्मान का भूखा रहता है।प्रशंसा या सराहना के मात्र दो शब्द उसके उत्साह को दुगना कर देते हैं।दूसरों की अच्छाइयों की प्रशंसा करना भी एक कला है।सच्ची व उदार प्रशंसा जहाँ इंसान को जीवन में अत्यन्त सफल बना सकती है वहीं झूठी प्रशंसा या चापलूसी उसके विवेक के द्वार बन्द कर देती है और उसे पतन के मार्ग पर ले जाती है।प्रशंसा में अवसर व विषय की प्रधानता प्रमुख स्थान रखती है।उचित समय व उपर्युक्त वातावरण में की गयी प्रशंसा ही अपने ध्येय में सफल होती है और सामने वाले इन्सान को इस हद तक प्रभावित करती है की वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिये सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार हो जाता है।अतः किसी को प्रोत्साहित करने के लिये ईमानदारी, सच्चाई व निष्पक्षता से उसका आकलन कीजिये और उसे प्रशंसा के महत्वपूर्ण शब्दों से ज़रूर सम्मानित कीजिए।

प्रशंसा करना भी एक कला है —
वास्तविकता से दूर जब अत्यधिक प्रशंसा होने लगे तो वह चापलूसी का रूप धारण कर लेती है।सच्ची प्रशंसा व चापलूसी में महज़ एक महीन सी रेखा है।समान कार्य के लिये की गयी बार बार प्रशंसा चापलूसी का ही रूप है।अपनी प्रशंसा सुनना हर इंसान को पसन्द होता है लेकिन चापलूसी सुनकर उसे न पहचानने वाले जीवन में अक्सर धोखा खा जाते हैं।चापलूसी में इन्सान अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर पाता है और अच्छी बुरी प्रशंसा को समझने में नाकाम हो जाता है।ऐसे व्यक्तियों से चतुर इन्सान बड़ी चालाकी से अपना मतलब हल कर लेते हैं।अतः जीवन में आगे बढ़ने के लिये इन्सान में प्रशंसा व चापलूसी को पहचानने की पारखी नज़र का होना अत्यन्त आवश्यक है।

दिल खोलकर प्रशंसा कीजिये —
अगर आप किसी की भी खुले दिल से सराहना या प्रशंसा करते हैं तो यह उसके लिये अनोखा अहसास होता है।प्रशंसा के मात्र दो शब्दों से उसके पाँव ज़मीन पर नहीं टिकते प्रतीत होते हैं।एकबारगी वह अपने आप को आसमान में उड़ने सरीखा महसूस करता है।यही प्रशंसा या सराहना की ताक़त है।अपने आसपास, परिवार, समाज के लोगों की ग़लतियों को दिखाने की बजाए उनका ‘आपने बहुत अच्छा काम किया’ कहकर उनकी दिल खोलकर प्रशंसा कीजिए और उनका हौसला बढ़ाइये।सराहना के ये दो शब्द आपके आपसी सम्बंधो को एक नया आयाम देंगे और आपसी सामंजस्य को बढ़ाकर उसे नई ऊँचाइयों की ओर ले जायेंगे। धन्यवाद व जय हिन्द
बहुत खूब! प्रशंसनीय!
धन्यवाद,प्रमिला जी