न्यूयार्क, सिर्फ़ अमेरिका का सर्वाधिक जनसंख्या वाला महानगर ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिये व्यापार,संस्कृति,फ़ैशन व मनोरंजन का केंद्र है। फ़ैशन कैपिटल के नाम से मशहूर इस महानगर में थिएटर व स्टूडियो बंद है, कभी न थमने वाला टाइम्ज़ स्कवेयर आज ख़ामोश है, मैनहट्टन की गगनचुंबी इमारतें को मानो लकवा मार गया हो, स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी आज अपनी बेबसी पर आँसू बहा रही है।और हज़ारों लोगों से गुलज़ार रहने वाली पब्लिक लाईब्रेरी में आज भूतों सा सन्नाटा है।आख़िर सदा ख़ुशहाल व कभी न रुकने वाले इस महानगर को किसकी नज़र लगी है, जानते हैं ।

20 जनवरी 2020 को अमेरिका में कोरोना वायरस के पहले मरीज़ का पता चलते पर भी सरकार की तरफ़ से इस ख़तरनाक बीमारी को लेकर उदासीनता बरती गयी।इस वायरस की संभावित भयानकता की इंटेलिजेन्स रिपोर्टों को दरकिनार कर दिया गया।सोशल डिस्टन्सिंग की ज़ोरदार धज्जियां उड़ाई गयी।वुहान से आने वाली फ़्लाइट बदस्तूर जारी थी।और लोग तेज़ी से कोरोना कैरीअर बनते जा रहे थे।बिज़नस व मनोरंजन उद्योग की लॉबी सरकार पर भारी पढ़ रही थी। और इस विकट समय में भी राज्य सरकारें अपनी डफली बजा रही थी और कारोबार बंद करने व सोशल डिस्टन्सिंग करने से क़तरा रही थी।शायद संसार की एकमात्र महाशक्ति व दुनिया में सर्वोत्तम चिकित्सा प्रणाली का दंभ उसे इस क़दर भयभीत कर देगा, यह उसने सपनें में भी नहीं सोचा होगा।

अमेरिका में अगर किसी जगह कोरोना क़हर बनकर टूटा है तो वह जगह न्यूयॉर्क है।इस ख़ूबसूरत शहर में कोरोना के इतने मरीज़ आ रहे हैं की दुनिया का सबसे बड़ा व बेहतरीन चिकित्सा सिस्टम चरमरा कर रह गया है।इस ख़बर के लिखे जाने तक तक़रीबन 1 लाख 88 हज़ार मरीज़ कोरोना पॉज़िटिव पाए गए है और क़रीब 9400 से अधिक मौतें हो चुकी है। 4000 से अधिक केस रोज़ाना सामने आ रहे हैं।इतने अधिक मरीज़ सामने आने से स्वास्थ्य व्यवस्था पर बहुत बोझ आ गया है।अस्पतालों में मास्क, दवाइयों,वेंटिलेटर व आवश्यक उपकरणों की भारी क़िल्लत हो गयी है।मास्क की भारी कमी से कई नर्स ने अपना काम छोड़ दिया है। रोज़ाना बढ़ रहे केसों के लिये प्रशासन ने कई यूनवर्सटीज़ व चर्च को अस्थायी हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया है।वेंटिलेटर पर रखे गए क़रीब 80 फ़ीसदी मरीज़ों की मौत हो रही है।मौत के बढ़ते आँकड़ों ने ट्रम्प सरकार की नींद उड़ा दी है। शवों को लाने व ले जाने के लिए रेफ़्रीजरेटर युक्त ट्रकों की व्यवस्था की है। न्यूयॉर्क के सभी क़ब्रिस्तान फ़ुल हो चुके हैं। शवों को दफ़नाने के लिये वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है। शहर से दूर टापू पर नई क़ब्रें खोदी जा रही हैं।पहले क़ब्र खोदने का काम क़ैदियों से कार्य करवाया जाता था लेकिन कोरोना फैलने के डर से स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों से ही कार्य करवाया जा रहा है।कोरोना के डर से लोग इतने भयभित हैं की डॉक्टर की सलाह के बिना ही हाईड्राक्सी क्लोरोक्वीन नामक दवाई इस्तेमाल कर रहे हैं। 18 मार्च से 6 अप्रैल तक इस दवा का उपयोग दुगुना हो गया है।

कोरोना ने आर्थिक मोर्चे पर भी अमेरिका के लिये कई कठिनाइयाँ पैदा की हैं। अमेरिका में 16 मिलियन से ज़्यादा लोग, पिछले तीन हफ़्ते में अपनी जॉब खो चुके हैं।और लगातार इनमें बढ़ोतरी हो रही है।न्यूयॉर्क का इसमें बहुत बड़ा हिस्सा है।सभी इंडस्ट्री व कंपनिया बंद होने से एक आम अमेरिकी के पास मकान,गाड़ी की किश्तें भरने के लिये पैसा नहीं है।और रोज़मर्रा के कामों के लिये भी वह बहुत मुश्किल से अपना गुज़ारा कर रहा है।स्थिति इतनी दुर्भाग्यपूर्ण हो चुकी है की कोरोना संक्रमित मरीज़ भी नर्सिंग स्टाफ़ से पूछ रहा है की इस इलाज का ख़र्चा कौन उठाएगा ? ख़ैर देर आयद दुरुस्त आयद, अब अमेरिकी सरकार इस महामारी के प्रकोप को भली भाँति जान चुकी है।और पूरे युद्ध स्तर पर आम अमेरिकी की सुरक्षा के लिये जी-जान से जुटी है।न्यूयॉर्क सिटी में स्कूलों को सितम्बर तक बंद कर दिया है।अमेरिका के इतिहास में पहली बार सभी 50 राज्यों में एक साथ आपदा घोषित कर दी गयी है।इसके अंतर्गत राज्य व सभी सरकारें इस महामारी के लिये फ़ेडरल फ़ण्ड का इस्तेमाल कर सकती हैं। निजी व सरकारी कंपनियो को आम अमेरिकियों के लिये आर्थिक योजना बनाने के लिये कहा गया है।इसके अलावा भी कई ऐसे क़दम उठाये गये हैं,जिन पर चलकर अमेरिका न केवल कोरोना से लड़ पाएगा अपितु विजयी बनकर उभरेगा। धन्यवाद व जय हिन्द
बहुत खूब लिखा है।
nice hindi 😛