बचपन का नाम सामने आते ही मासूम व निर्मल चेहरे वाले बच्चे आँखों के सामने घूमने लगते हैं।उत्साह व भोलेपन से भरपूर बच्चे हमारे आसपास मँडराते रहते हैं और जीवन में एक प्यारे सपने की तरह हर पल साथ होते हैं।सपनों की दुनिया में विचरते इस बचपन का हर लम्हा तनाव व किसी भी तरह की परेशानियों से मुक्त होता है।बचपन अत्यन्त निर्मल व ऊर्जा से भरपूर होता है।मनुष्य के जीवन का सबसे प्यारा पल बचपन है,जिसे पुनः जीने की लालसा हर व्यक्ति के मन में बसी होती है।शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो अपने बचपन को याद न करता हो।लेकिन आज बच्चों की बेफ़िक्री से भरी दुनिया कहीं खो गयी है।बचपन की नादानियाँ, शैतानियाँ व मस्ती कहीं नज़र नहीं आ रही है।

कोरोना काल ने छीना बचपन —
जैसे जैसे कोरोना का प्रसार बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे बच्चों पर तनाव भी बड़ी तेज़ी से अपना असर दिखा रहा है।आज भी बच्चे घरों में क़ैद हैं। हँसना, खेलना, खाना-पीना व दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कहीं पीछे छूट गया है।जन्मदिन की पार्टीयाँ बन्द हैं, कहीं आना जाना, गलियों में खेलना, पार्कों में घूमना सब कुछ बन्द है। क्लास रूम की दोस्ती बीते दिनों की याद दिला रही है। उन्मुक्त रूप से विचरण करने की बच्चों की आदत, आज अनोखी बात लगती है।कोरोना ने छोटे छोटे मासूम बच्चों पर जमकर क़हर ढाया है।
लॉकडाउन के बुरे प्रभाव —

कोरोना ने दुनियाभर के सभी स्कूलों को अनिश्चितकाल के लिये बन्द करवा दिया तो इन बच्चों के क्लास रूम की जगह ऑनलाइन पढ़ाई ने ले ली है और यही डिजिटल स्क्रीन बच्चों की सबसे बड़ी दुश्मन साबित हो रही है। लगातार 3 से 4 घण्टे लैपटॉप या मोबाईल पर पढ़ाईं करने से बच्चों में सिरदर्द व आँखों में जलन, जैसी समस्याएँ पैदा हो रही हैं।ख़ासकर छोटे छोटे बच्चों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। लम्बे समय से घर पर क़ैद रहने से बच्चों में घर से बाहर न निकलने की निराशा साफ़ दिखाई देने लगी है।इससे बच्चों में मानसिक तनाव बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है मानसिक तनाव बढ़ने से बच्चों की नींद उड़ने लगी है और वह मोटे होते जा रहें हैं।उन्हें अभूतपूर्व अकेलेपन का सामना करना पड़ रहा है।

पेरेंट्स की बढ़ती ज़िम्मेवारी —
जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते हैं तब तक हमें बहुत ध्यान से उनकी देखभाल करनी पड़ेगी।ये लॉकडाउन हमें अपने बच्चों को संभालने व उनकी ढंग से परवरिश करने की सीख दे रहा है। बच्चों का मन बहुत कोमल व करुणा से भरा हुआ होता है अतः बच्चों से मेलजोल बढ़ाकर ही उनके मन के हालात को जाना जा सकता है।लॉकडाउन में बच्चों के बदलते व्यवहार व गतिविधियों को बड़े ध्यानपूर्वक समझें व उनके समाधान के लिये बच्चों के साथ बच्चा बन जायें।उन्हें स्कूल व दोस्तों की कमी न महसूस होने दें। उन्हें खेलने के लिये खिलौने व पढ़ने के लिये रुचिवर्धक किताबें लाकर दें।आप उसकी गतिविधियों में ख़ुद शामिल होकर एक अच्छे पेरेंट्स बन सकते हैं और अपने बच्चे को पूरी उम्र के लिये अपना सबसे प्यारा दोस्त बना सकते हैं।

वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता है।यह भयानक दौर भी एक दिन गुज़र जायेगा।पार्क, गलियाँ, स्कूल फिर से खुलेंगे और बचपन फिर से लौट आयेगा।पहले से ज्यादा उत्साह, नई मासूमियत व भोलेपन से भरपूर। शहर फिर से आबाद होंगे और दुनिया फिर से खड़ी हो जायेगी एक नयी ताक़त से, एक नयी सोच समझ से।पहले से कहीं ज्यादा सावधान व अपनी कमज़ोरियों को पहचानने वाली। धन्यवाद व जय हिन्द
One beautiful piece of work.. 👌👌👏👏
Thank you
Nice observations
So true..hope everything is back to normal soon.